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Mahadevi Verma poems on animals

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Mahadevi Verma poems on animals My own experiences are quite relatable. When in Patna, I used to notice people selling birds in our lane. Pigeons, parakeets and sparrows would peep out of their cages and cry when carried from one part of the city to another. On my insistence, my parents once bought me a parrot and I set it free after tending to it for almost two months. We have had other species of birds at home too. Fish and dogs became our regular guests as well. We lost them one by one though. But believe me, the sorrow of losing pets is nothing when compared to the memories of the quality time spent together. Mahadevi Verma’s animal stories revolve around this theme and have a personal touch. Here are some stories that you may find interesting. A word of recommendation — try reading the original stories in Hindi to savour the flavour of the text! 1. Neel kanth:  There is a doubt lurking in the minds of Mahadevi’s well-wishers that Neel kanth and Radha are no

mahadevi verma information in hindi

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Mahadevi Verma information in hindi. Mahadevi Varma (Hindi: महादेवी वर्मा) best known as an outstanding Hindi poet, was a freedom fighter, woman's activist and educationist from India. She is widely regarded as the "modern Meera". She was a major poet of the Chhayavaad generation, a period of romanticism in Modern Hindi poetry ranging from 1914-1938. With passage of time, her limited but outstanding prose has been recognised as unique in Hindi Literature. She was a prominent poet in Hindi Kavi sammelans (Gatherings of poets).  She was the Principal, and then the Vice Chancellor of Prayag Mahila Vidyapeeth, a woman's residential college in Allahabad. She was awarded India's highest literary award, for lifetime achievement, the Sahitya Akademi Fellowship in 1979, followed by the Jnanpith Award in 1982. She was the recipient of the Padma Vibhushan, India's second-highest civilian award, in 1988.  Life of mahadevi verma  Mahadevi was born in the family o

Maithili Sharan Gupt Poems in hindi (Top 5)

Maithili Sharan Gupt Poems in Hindi 1: जीवन की ही जय हो – मैथिलीशरण गुप्त मृषा मृत्यु का भय है जीवन की ही जय है । जीव की जड़ जमा रहा है नित नव वैभव कमा रहा है यह आत्मा अक्षय है जीवन की ही जय है। नया जन्म ही जग पाता है मरण मूढ़-सा रह जाता है एक बीज सौ उपजाता है सृष्टा बड़ा सदय है जीवन की ही जय है। जीवन पर सौ बार मरूँ मैं क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं यदि न उचित उपयोग करूँ मैं तो फिर महाप्रलय है जीवन की ही जय है। 2: नहुष का पतन – मैथिलीशरण गुप्त मत्त-सा नहुष चला बैठ ऋषियान में व्याकुल से देव चले साथ में , विमान में पिछड़े तो वाहक विशेषता से भार की अरोही अधीर हुआ प्रेरणा से मार की दिखता है मुझे तो कठिन मार्ग कटना अगर ये बढ़ना है तो कहूँ मैं किसे हटना ? बस क्या यही है बस बैठ विधियाँ गढ़ो ? अश्व से अडो ना अरे , कुछ तो बढ़ो , कुछ तो बढ़ो बार बार कन्धे फेरने को ऋषि अटके आतुर हो राजा ने सरौष पैर पटके क्षिप्त पद हाय! एक ऋषि को जा लगा सातों ऋषियों में महा क्षोभानल आ जगा भार बहे , बातें सुने , लातें भी सहे क्या हम तु ही कह क्रूर , मौन अब भी रहें क्या हम पैर

Best 5 Poems Of Maithili Sharan Gupt

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Best 5 Poems Of Maithili Sharan Gupt 1: आर्य – मैथिलीशरण गुप्त हम कौन थे , क्या हो गये हैं , और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर , यह समस्याएं सभी भू लोक का गौरव , प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां फैला मनोहर गिरि हिमालय , और गंगाजल कहां संपूर्ण देशों से अधिक , किस देश का उत्कर्ष है उसका कि जो ऋषि भूमि है , वह कौन , भारतवर्ष है यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है , इसके निवासी आर्य हैं विद्या कला कौशल्य सबके , जो प्रथम आचार्य हैं संतान उनकी आज यद्यपि , हम अधोगति में पड़े पर चिन्ह उनकी उच्चता के , आज भी कुछ हैं खड़े वे आर्य ही थे जो कभी , अपने लिये जीते न थे वे स्वार्थ रत हो मोह की , मदिरा कभी पीते न थे वे मंदिनी तल में , सुकृति के बीज बोते थे सदा परदुःख देख दयालुता से , द्रवित होते थे सदा संसार के उपकार हित , जब जन्म लेते थे सभी निश्चेष्ट हो कर किस तरह से , बैठ सकते थे कभी फैला यहीं से ज्ञान का , आलोक सब संसार में जागी यहीं थी , जग रही जो ज्योति अब संसार में वे मोह बंधन मुक्त थे , स्वच्छंद थे स्वाधीन थे सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे , वे शांति शिखरासीन थे मन से ,